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रमेश के गांव में सबको उस पर गर्व था। उसकी मां, जो उसे अकेले पाला करती थी, उसकी इस सफलता पर फूली नहीं समा रही थी। लेकिन रमेश जानता था कि यह सिर्फ शुरुआत है। असली परीक्षा तो अब शुरू होने वाली थी।