वह समझ गई कि यह दरवाजा केवल सत्य, निस्वार्थता और ज्ञान से ही खुल सकता है। रत्ना ने अपनी आंखें बंद की और अपने दिल से प्रार्थना की। उसने यक्ष से विनम्रता से कहा, "हे यक्ष, मैं इस खजाने की लालसा में नहीं आई हूँ। मैं यहां अपने राज्य और प्रजा की भलाई के लिए आई हूँ। यदि मेरी नीयत सच्ची और निस्वार्थ है, तो कृपया मुझे खजाने तक पहुंचने दो।"